एनाटॉमी अर्थात शरीर-रचना विज्ञान। यह चिकित्सा विज्ञान की
वह शाखा है जिसमें मानव शरीर की रचना और उसके विभिन्न अंगों के व्यावसायिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इसे अनेकों विशिष्ट शाखाओं में बांटा जा सकता है, जिसमें से कुछ को आगे बताया जा रहा है।
ग्रौस एनाटॉमी (सकल या स्थूल शरीर रचना) - इसमें रक्षित हुए
मृत शरीर (कैडेवर) का विच्छेदन कर नंगी आँखों द्वारा दिखाई देने वाली शरीर की स्थूल रचनाओं का अध्ययन किया जाता है। इसमें क्षेत्रीय शरीर रचना (क्षेत्रीय) या सांस्थानिक शरीर रचना (व्यवस्थित) के अनुसार अध्ययन किया जा सकता है। क्षेत्रीय शरीर रचना विज्ञान (क्षेत्रीय शरीर रचना) में शरीर के विभिन्न भाग जैसे- सिर, छाती, भुजा या टांग आदि की मांसपेशियों, हड्डियों और तन्त्रिकाओं का अध्ययन किया जाता है। सांस्थानिक शरीर रचना विज्ञान (व्यवस्थित शरीर रचना) में एकमान कार्य करने वाली समस्त संरचनाओं जैसे पेशियों का एक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है।सर्फेस एनाटॉमी (स्थलाकृतिक शरीर रचना) - इसमें शरीर की परत पर मौजूद या इससे संबंधित संरचनाओं (संरचनाएं) का अध्ययन किया जाता है क्योंकि उनका सम्बन्ध नीचे स्थित ऊतकों और भागों से होता है। उदाहरण के तौर पर जबड़े की पेशियों का सम्बन्ध चेहरा या तस्वीर से होता है, जिसे मुंह बंद करने पर देखा और अनुभव किया जा सकता है।) नवजात शिशु की सतही शरीर-रचना में शिशु की हड्डियों के किनारों को बच्चे के सिर के कोमल स्थान (एन्टीरियर फोन्टोनेल) पर देखा जा सकता है।
अप्लाइज एनाटॉमी (एप्लाइड एनाटॉमी) - इसका सम्बन्ध रोग
निदान और चिकित्सा, विशेषकर शल्य चिकित्सा-चिकित्सा से है। इसके अन्तर्गत शल्य चिकित्सक शरीर का सर्वेक्षण करने, उच्छेदन करने या संरचनाओं की मरम्मत करने के उद्देश्य से शरीर को उन्मुक्त करता है। इसे शल्य क्रियात्मक शरीर-रचना विज्ञान (सर्जिकल शरीर रचना) भी कहते हैं।
रेडियोलॉजिकल एनाटॉमी (रेडियोलॉजिकल एनाटॉमी) - इसके अंतर्गत एक्स-रे फिल्म में भागों का आपसी सम्बन्ध देखकर उनकी शारीरिक रचना (एनाटोमिकल) सम्बन्धी दोषों की जांच की जाती है।
काइनेस सियोल (काइन्सियोलॉजी) - इसके अंतर्गत पेशीय गतियों और विशेष हड्डी पर पेशियों के दबाव और खिंचाव का अध्ययन किया गया है।
ऑस्टियोलॉजी (ओस्टियोलॉजी) - इसके अंतर्गत हड्डियों का अच्छी तरह से अध्ययन किया जाता है। टूटी हुई हड्डियों को ठीक से बैठाने या शरीर के अंगों को बनाने के लिए ऑर्थोपेडिक सर्जन को काइनेस सियोल एंड ऑस्टिनिपाई दोनों में सुधार होना बहुत जरूरी है।
परमाणुप एनाटॉमी (सूक्ष्म शरीर रचना) - इसके अंतर्गत सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोपी) के विकास के बाद मानव शरीर की अतिसूक्ष्म संरचनाओं का अध्ययन आसानी से कर लिया जाता है। पहले इन सरंचनाओं को नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता था।
कोशिका विज्ञान (साइटोलॉजी) - कोशिका विज्ञान के अन्तर्गत कोशिकाओं की उत्पत्ति, संरचना, कार्य और विकृति का अध्ययन किया जाता है।
ऊतक विज्ञान (Histolgy) - ऊतक विज्ञान में सूक्ष्मदर्शी द्वारा शरीर के ऊतकों का अध्ययन किया जाता है।
अंग विज्ञान (अंग लॉग) - अंग विज्ञान में सूक्ष्मदर्शी द्वारा प्राथमिक ऊतकों- एपीथाईलियल (उपकला), संयोजी (संयोजी), मस्कुलर (मांसपेशियों) और नर्वस (तंत्रिका) ऊतकों के सनातन को बने शरीर के अंगों का अध्ययन किया जाता है।आकृति विज्ञान (आकृति विज्ञान) - आकृति विज्ञान में शरीर के किसी भाग या अंग की बाह्म रूप-रेखा और रचना का अध्ययन किया जाता है।
विकासमेन्टल एनाटॉमी (डेवलपमेंट एनाटॉमी) - इसके
अन्तर्गत गर्भाधान से लेकर युवावस्था के आरम्भ तक, होने वाले रचनात्मक परिवर्तनोंों का अध्ययन किया जाता है।
भ्रूण-विज्ञान (भ्रूणविज्ञान) - भ्रूण-विज्ञान में भ्रूण की अवस्था में होने वाले विकास का अध्ययन किया जाता है। मनुष्य में यह अध्ययनशीलता और भ्रूणीय जीवन के लगभग 8 छेद तक अंग-संस्थानों (अंग svstems) के सहस्र विकास तक किए गए हैं।
फीटल एनाटॉमी (भ्रूण एनाटॉमी) - इसके अंतर्गत भ्रूण के आठ सप्ताह के होने के बाद से लेकर बच्चे के जन्म तक होने वाले अंग- संस्थानों के विकास का अध्ययन किया जाता है।
टेराटोलॉजी (वैरूपिकी) (टेराटोलॉजी) - टेराटोलॉजी डेवलपरमेन्टल एनाटॉमी की ही शाखा में है। इसके अन्तर्गत भ्रूण के असामान्य विकास का अध्ययन किया जाता है।
भौतिकी विज्ञान (जेनेटिक्स) - इसके अन्तर्गत जीन्स और गुणसूत्रों (क्रोमोसोम) और उनकी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण का अध्ययन किया जाता है।
Hi
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