सना नाम शायरी-शाइस्ता सना शायरी - Sana shayari

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Sana shayari

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Monday 7 January 2019

सना नाम शायरी-शाइस्ता सना शायरी

shayari on sana-sana ki shayari

आईना क्यूँ न दूँ के तमाशा कहें जिसे ऐसा कहाँ से लाऊँ के तुझसा कहें जिसे
हसरत ने ला रखा तेरी बज़्म-ए-ख़्याल में गुलदस्ता-ए-निगाह सुवेदा कहें जिसे
फूँ फूँका है किसने गोशे मुहब्बत में ऐ ख़ुदा अफ़सून-ए-इन्तज़ार तमन्ना कहें जिसे सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से डलिये

वो एक मुश्त-ए-ख़ाक के सहरा कहें जिसे
है चश्म-ए-तर में हसरत-ए-दीदार से निहाँ
शौक़-ए-इनाँ गुसेख़ता दरिया कहें जिसेदरकार है शिगुफ़्तन-ए-गुल हाये ऐश को

सुबह-ए-बहार पंबा-ए-मीना कहें जिसे
'ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहें जिसे
दिया है दिल अगर उस को, बशर है क्या कहिये
हुआ रक़ीब तो हो, नामाबर है, क्या कहिये

ये ज़िद्, कि आज न आवे और आये बिन न रहे
क़ज़ा से शिकवा हमें किस क़दर है, क्या कहिये

रहे है यूँ गह-ओ-बेगह के कू-ए-दोस्त को अब
अगर न कहिये कि दुश्मन का घर है, क्या कहिये

ज़िह-ए-करिश्म के यूँ दे रखा है हमको फ़रेब
कि बिन कहे ही उंहें सब ख़बर है, क्या कहिये

समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल
कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र है, क्या कहिये

तुम्हें नहीं है सर-ए-रिश्ता-ए-वफ़ा का ख़्याल
हमारे हाथ में कुछ है, मगर है क्या कहिये

उंहें सवाल पे ज़ओम-ए-जुनूँ है, क्यूँ लड़िये
हमें जवाब से क़तअ-ए-नज़र है, क्या कहिये

हसद सज़ा-ए-कमाल-ए-सुख़न है, क्या कीजे
सितम, बहा-ए-मतअ-ए-हुनर है, क्या कहिये

कहा है किसने कि 'ग़ालिब' बुरा नहीं लेकिन
सिवाय इसके कि आशुफ़्तासर है क्या कहिये

shayari on sana-sana ki shayari

shayari on sana-sana ki shayari

आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है
ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार नहीं है

देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले
नश्शा बअन्दाज़-ए-ख़ुमार नहीं है

गिरिया निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को
हाये! कि रोने पे इख़्तियार नहीं है

हम से अबस है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर
ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुब्बार नहीं है

दिल से उठा लुत्फे-जल्वाहा-ए-म'आनी
ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है

क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे
वाये! अगर अहद उस्तवार नहीं है

तू ने क़सम मैकशी की खाई है 'ग़ालिब'
तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है

ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार - बेमिसाल इन्तेज़ार की ताक़त 
हयात-ए-दहर - दुनिया 
नश्शा - नशा 
बअन्दाज़-ए-ख़ुमार - नशा चढ़ने के मुकाबले 
गिरिया - रोते हुए 
अबस - बेकार 
गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर - नाराज़गी का संदेह 
उश्शाक़ - प्रेमी 
लुत्फे-जल्वाहा-ए-म'आनी - सुन्दरता के मायने 
ग़ैर-ए-गुल - फूल के सिवा 
आईना-ए-बहार - बहार का आइना 
अहद - वादा 
बारे - अंततः 
वाये - दुःख है 
उस्तवार - मज़बूत 
मैकशी - शराब पीना नक़्‌श फ़र्‌यादी है किस की शोख़ी-ए तह्‌रीर का
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काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए तस्‌वीर का

काव-काव-ए सख़्‌त-जानीहा-ए तन्‌हाई न पूछ
सुब्‌ह करना शाम का लाना है जू-ए शीर का

जज़्‌बह-ए बे-इख़्‌तियार-ए शौक़ देखा चाहिये
सीनह-ए शम्‌शीर से बाहर है दम शम्‌शीर का

आगही दाम-ए शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए
मुद्‌द`आ `अन्‌क़ा है अप्‌ने `आलम-ए तक़्‌रीर का

बसकि हूं ग़ालिब असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए पा
मू-ए आतिश-दीदह है हल्‌क़ह मिरी ज़न्‌जीर का

हुस्न-ए-माह गरचे बा-हँगाम-ए-कमाल अच्छा है,
उससे मेरा मह-ए-ख़ुरशीद जमाल अच्छा है

बोसा देते नहीं और दिल है हर लह्ज़ा निगाह,
जी में कहते हैं कि मु़फ्त आए तो माल अच्छा है

और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया,
साग़र-ए-जम से मेरा जाम-ए-सि़फाल अच्छा है

बेतलब दें तो मज़ा उसमें सिवा मिलता है,
वो गदा जिसको न हो ख़ू-ए-सवाल अच्छा है

हम-सुख़न तेशे ने फ़र्हाद को शीरीं से किया,
जिस तरह का कि किसी में हो कमाल अच्छा है

क़तरा दरिया में जो मिल जाए तो दरिया हो जाए,
काम अच्छा है वो, जिसका कि मआल अच्छा है

ख़िज़्र सुल्ताँ को रखे ख़ालिक-ए-अक्बर सर-सब्ज़,
शाह के बाग़ में ये ताज़ा निहाल अच्छा है

उनके देखे से आ जाती है मुँह पे जो रौनक
वो समझते है बीमार का हाल अच्छा है

देखिये पाते हैं उश्शाक़ बुतो से क्या फ़ैज 
इक ब्रहामन ने कहा है कि ये साल अच्छा है

हमको मालूम है जन्नत की हकी़क़त लेकिन
दिल को बहलाने के लिए 'ग़ालिब', ये खयाल अच्छा है

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