sana name shayari
न शो'ले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू क्या है
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न तुमसे वर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़िए-अ़दू क्या है
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन हमारी जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है
जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है
रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं क़ायल जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है
वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाए वादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो-चार
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी तो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है
हुआ है शाह का मुसाहिब, फिरे है इतराता
वगर्ना शहर में 'ग़ालिब; की आबरू क्या है शोखे-तुंद-ख़ू - बिज़ली
शोखे-तुंद-ख़ू - शरारती-अकड़ वाला
हमसुख़न - अकसर बातें करना
ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़िए-अ़दू - दुश्मन के सिखाने-पढ़ाने का डर
पैराहन - चोला
shaista sana shayari
हाजत-ए-रफ़ू - रफ़ू करने की जरूरत जुस्तजू - तलाश
क़ायल - प्रभावित होना
बहिश्त - स्वर्ग
ऊपर अज़ीज़ - प्रिय
ऊपर वादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू - गुलाबी कस्तूरी-सुगंधित शराब
ख़ुम - शराब के ढ़ोल
शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू - बोतल, प्याला, मधु-पात्र और मधु-कलश
ताक़त-ए-गुफ़्तार - बोलने की ताकत मुसाहिब - ऱाजा का दरबारी
आबरू - प्रतिष्ठा
ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के ख़स्तगी का तुम से क्या शिकवा कि ये हथकण्डे हैं चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम के
ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम रहें यूँ तिश्ना-लब पैग़ाम के हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दम
धोए धब्बे जामा-ए-एहराम के दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर
ये भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के
शाह के है ग़ुस्ल-ए-सेह्हत की ख़बर
देखिए कब दिन फिरें हम्माम के इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
बोसे - चुम्मन तिश्ना-लब - प्यासे होंठ ख़स्तगी - कमजोरी
shayari on sana
चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम - नीला आकाश
जामा-ए-एहराम - एक ख़ास कपड़ा जो हज में पहनते हैं
हल्क़े - जंजीर
दाम - फासने के
ग़ुस्ल-ए-सेह्हत - तबियत ठीक होने के बाद का स्नान
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ कॆ सर होने तक
दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग
देखे क्या गुजरती है कतरे पे गुहर होने तक
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं खून-ए-जिगर होने तक
हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको ख़बर होने तक
परतवे-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
में भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक
यक-नज़र बेश नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल
गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर होने तक
गम-ए-हस्ती का 'असद' कैसे हो जुज-मर्ग-इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक
सर - विजय, सुलझना.
दाम - फांस
मौज - समुद्र की तरंग
हल्का-ए-सदकामे-नहंग - सैकड़ो मगरमच्छो का जबड़ा
गुहर - मोती होना तगाफुल - उपेक्षा परतवे-खुर - सूरज
बेश - ज्यादा
गम-ए-हस्ती - जीवन का दुख जुज-मर्ग - मौत के सिवा
सहर - सु
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