शेखचिल्ली के ख्याली पुलाव - Sana shayari

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Tuesday 18 December 2018

शेखचिल्ली के ख्याली पुलाव

शेखचिल्ली के ख्याली पुलाव

एक दिन शेखचिल्ली की कम्मी ने उससे कहा बेटे अब तुम जवान हो गए हो अब तुम्हें
 कुछ काम घंघा करना चाहिए क्या करु
कोई भी काम करो लेकिन मुझे तो कोई काम अआता
 हीनहीं फिर मुझे कौन काम पर रखेगा कुछ न कुछ
तो करना ही पडे़गा बेटे तू खुद ही सोच कि
   मेराबुढा़ शरीर कब तक तेरा बोझ
उठाता रहेगा

आप ऐसा कहती हौं तो ठीक है मै काम की तलाश
में चला जाता हूं आप बढिंया सा भोजन
बनाइए मैं खा पीकर चला जाऊंगा अभी बना देता हू
शखचिल्ली की अम्मी ने उनके लिए बढ़िया बढ़िया पकवान बनाये और खिला पिलाकर उन्हें
नौर कोई बात नहों थी

वह मस्ती में झुमते हुए घर से बाहर निकल पड़े उनके
दिमाग में नौकरी और मजदूरी के सिवा
और कोई बात नहीं थी
रास्ता में उन्हें एक वयकित मिला जो अण्डें का झाबा
सिर पर लिए परेशान हो रहा था बोझ के
मारे उसके कदम लड़खड़ा रहे थे उसने शेख के देखते
ही कहा ऐ भाई मजदूरी
          शेखचिल्ली

बिल्कुल करूंगा बनदा तो मजदूरी की तलाश में हो
हौ
तो मेरा यह झाबा ले चलो इसमें अण्डे हौ
टुट न जाएं तुम इसे मेरे घर तक पहुंचा दोगे तो
मैं तुम्हें दो अण्डे दुंगा
सि फि दो अण्डे
हां कम नहों हौं जरा सोचो तो सही दो अण्डें से इंसान
की तकदीर बदल सकती है और
मेरा घर भी ज्यादा दूर नहों है
ठीक है मैं चलता हूं

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